कर्म ही तो धर्म है-सुधा बसोर

हिंदी दिवस विशेष 


 कोसना किस्मत को अपनी

 नहीं इसमें कोई मर्म है

 करते रहो तुम कर्म निरंतर 

क्योंकि कर्म ही तो धर्म है


 कर्म जड़ है जीवन तरु की 

सींचते तुम श्रम कण से रहो 

 आऐं कितनी भी बाधाएं 

धैर्य से तुम डटे रहो 

सत्कर्मों के लिए ही मिलता  

बस ये मानव जन्म है               

क्योंकि कर्म ही तो धर्म है

 पुष्प मार्ग पर चार कदम चल

 मंजिल कभी नहीं मिलती

 बढ़ा कदम तू कंटक पथ पर

 घायल पैरों से ही तो सफलता हे
मिलती बढ़ता चल तू मनुज निरंतर 

बढ़ते चलना ही तो तेरा धर्म है 

क्योंकि कर्म ही तो धर्म है 


गीता का भी शाश्वत उपदेश यही है 

कर्म किए जा बिन फल की इच्छा 

चीर तिमिर बनता चिराग जो

 होता प्राणी साधक सच्चा

सदाचार और उन्नति का मूल ही तो कर्म  है।
तोता बन तू रट ले प्यारे कर्म ही तो धर्म है

सुधा बसोर 
गाजियाबाद यूपी



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