लो आज आई थी वो हमें उनकी याद दिलाने पता ना था हमें भी वह भी आई थी फिर से रुलाने जब उसकी बूंदों ने हमें छुआ था तब हम कुछ पल के लिए ही सही जीवन के सारे गम भूल है थे हमारे मन में तो उसने जगह तब बनाई थी जो आंसुओं में मिलकर और बरस गई थी रुकना तो वह भी चाहती थी पर उसको भी किसी से मोहब्बत जो थी हम भी उसको कैसे रोकते यारो वो भी तो महीनों बाद अपना फर्ज निभाने जा रही थी था कोई प्यासा जो उसकी यादों में बेकरार था वो कोई बेवफा नहीं थी यारों वह बारिश की बूंद थी जो नदी से मिलने जा रही थी।
नेहा शर्मा विदिशा मध्यप्रदेश
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