कविता- आदिवासी स्त्रियाँ

 जिनकी रगो में 
धड़कती ईमानदारी, 

 जिनकी संवेदनाओं के बादल 
हथेलियों की रेखाओं में बसे हुए,
 
अपने नवोदित स्वप्न
 टूटते देखती हैं, 
तो झर जाती है
 झरने की तरह, 

जिनके होठों पर सुंदर सरगम, 
जिनकी भावनाओं में
 अनंत रहस्य छिपे हुए,

 जिनकी देह में नील के रूप में,
 किसी की आशाएं जमी हुई, 
मीठे पानी के सोते की तरह, 
शांत सी देखती हैं, 

उनको देखकर मिट जाता है
 मेरी भाषा का ताप, 

भूल जाती हूँ छंद, अलंकार
बजाती हैं जब वो बांसुरी, 
उनकी सुखद धुन 

इतिहास के पन्नों पर लिखी जाती है,
 तोड़ देती है जंगल का चक्रव्यूह, 
निःशब्द हो जाती हूँ मैं, 

आदिवासी स्त्रियां 
जिनके अंतर्मन की आवाज
रागविराग की है भंडार, 


जिनकी खनकती आवाज
अनादिकाल से गुंज रही है,
 

मेरी उपमाएं फिकी पड़ गई
उनके आगे बिना रंग के चित्र की तरह


 बबिता कुमावत
 सहायक प्रोफेसर , राजकीय महाविद्यालय नीमकाथाना, सीकर 
मोबाइल नंबर -9928291605


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