दहन हो गई वो भाभी
जल गयी उसकी चिता
घर में ही।
रो रही थी वह क्रूर निर्मम
हत्यारों के सामने।
आर्तनाद स्वर से।
जिसके नाम का सिंदूर
भाभी ने अपने माथे पर
सजाया था।
उसका नराधम पति ही
उसको चिता तक पहुंचाया
था।
सास ससुर से जब भाभी
मार खाती थी।
छुप छुपाके भागी वह मेरे
घर चली आती थीं।
रो रोकर सारा वृत्तांत मेरी
मां को सुनाती थी।
दोष कोई नहीं होता था
कभी-कभी फ्रिज टीबी
के लिए बिना मौसम के
मायके जबरदस्ती भेजी
जाती थी।
पांच बहनों में सबसे बड़ी
थी भाभी।
गरीब पिता ने रवि भैया के
पिता के पैरों तले जब रख
दी थी अपने सिर की पगड़ी।
बड़े ही कातर निगाहों से
भाभी के पिता रवि भैया
के पिता की ओर देखकर
बोले थे
बचा लीजिए मेरी पगड़ी की
लाज।
कर दीजिए रवि के संग मेरी
बेटी के हाथ पीले।
दहेज में मोटी रकम न दे
पाने में असमर्थ पिता की
पगड़ी को लात मार दिया।
अंततः इस बात पर मनवा
लिया कि थोड़े-थोड़े पैसे
इकट्ठे हो जाने पर दहेज
का सामान और पैसे देते
रहेंगे।
सीमित कमाई से अरमान
पूरे ना होने पर बहू को
प्रताड़ित करना शुरू किया।
जिसमें पति' सास,ससुर
और ननद ने भरपूर साथ
दिया।
आखिर एक दिन मौका पाकर
जालिमों ने भाभी का गला घोंट
कर मार दिया।
और लाश को घर में ही जलाकर
ज़ोर ज़ोर से रोने का अभिनय
सभी करने लगे।
रवि भैया की मां कहने लगी
बहू गैस लीक होने से खाना
बनाते हुए आग से जलकर
मर गई।
खबर जब बहू के मायके
पहुंची।
भाभी के पिता पर तब क्या
से क्या नहीं गुजरी।
शिकायत दर्ज हुई थाने में
सभी बांध कर जेल गए।
दहेज की भेंट चढ़ी बेटी
के पिता कोर्ट कचहरी का
चक्कर लगाते रहे।
सुनने में आया कुछ वर्षों
बाद मिली सजा हुआ
आजीवन कारावास।
शांति भाभी की आत्मा को
मिला उचित न्याय।
दहेज की आग में झुलस
गया पति पत्नी का पावन
रिश्ता।
प्रतिमा यादव (पंखुड़ी)
गोरखपुर
96701 29130

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