एक समय की बात है ,एक घर में खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी। वह दिन था, जब उस घर की लाडली बिटिया, फूलों सी कोमल, चांद सी सुंदर, और संस्कारों से सजी, जीवन के नए अध्याय की ओर कदम बढ़ा रही थी। आज वह सिर्फ किसी की बेटी नहीं बल्कि, किसी घर की वधू बनने जा रही थी। उसके मन में नए सपनों का संसार था। थोड़ा संकोच, थोड़ी मुस्कान, और ढेर सारा प्यार। उसने जब विदा होते अपने आंगन को देखा तो आंखें भीग गई। पिंजरे से तोते ने कहा मुन्नी आत्माराम को भोजन दो। वह सोचने लगी अब मैं भी किसी पिंजरे की तोता बनने जा रही हूं। आंखें भीग गई पर उसी पल उसके मन में नए चौखट का ख्याल आया और उसकी आंखों में फिर से चमक लौट आई क्योंकि सिर्फ बहू नहीं एक दोस्त (अपने पति) की जीवन संगिनी, पिता तुल्य ससुर जी की बेटी बनने जा रही थी।
वधू बनने का मतलब है दो घरों को जोड़ना, परंपराओं को अपनाना, और हर रिश्ते में मिठास घोल देना। आज वह दुल्हन बनी है कल वह उस घर की पहचान बनेगी। उसके मुस्कान से घर आंगन खिलेगा और उसके प्रेम से सब का जीवन सुंदर बनेगा।नई पीढ़ी को यह संदेश है कि शादी का नाम बंधन नहीं परिवर्तन है।
रंजू राय मुंबई

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