अपनी बेटी सुनाली के बार-बार आग्रह करने पर रामलाल आज बेटी के विद्यालय में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुआ था । कार्यक्रम ' बेकार वस्तुओं का उपयोग ' विषय पर था । बच्चों ने एक से बढ़कर एक पांडाल सजाए थे । जिस में तरह-तरह की कलाकृतियां रखीं गई थीं । इन्हीं में से एक पांडाल में सुनाली और उसकी सहेलियों ने अपनी कलाकृतियां रखीं हुईं थीं ।
पांडाल के पास पहुंचते ही वह जैसे ठिठक सा गया । उसके पांव वहीं जम गये । वह चाहकर भी वहां से आगे नहीं बढ़ पा रहा था । सुनाली और उसकी सहेलियों ने खाली प्लास्टिक की बोतलों को दुल्हा-दुल्हन के रूप में क्या खूब सजाया था । इन कलाकृतियों के ठीक पीछे वे सब खड़ी थीं । कलाकृतियां को निखारते-निखारते रामलाल कहीं और ही पहुंच गया था । उसको ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे सामने उसकी बेटी सुनाली दुल्हन बन बैठी हो । वह बहुत देर तक उसको टकटकी लगाए देखे जा रहा था ।
' पापा जी ! कैसी लगी हमारी मेहनत ' सुनाली की आवाज सुन कर उसकी एकाग्रता भंग हुई ।
'हें ! हें ! बहुत ही सुन्दर बेटी ! ' वह मुस्कराया और आगे बढ़ गया । वह मन में सोच रहा था कि एक दिन सचमुच ही उसकी बेटी दुल्हन बन उसे छोड़ कर चली जाएगी । समाज ने क्या रीति रिवाज बनाया है ।
संजय 'सरल'
ऊधमपुर ,जम्मू-कश्मीर ।

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