प्रेम का दीपक बुझाकर लोग खुश होने लगे।
पीर का संत्रास पाकर दो हृदय रोने लगे।।
प्रेम को ईश्वर कृपा का रूप सुंदर जानिए।
हो गया यदि प्रेम तो आभार प्रभु का मानिए।।
कृष्ण-राधा से सजीले स्वप्न फिर बोने लगे।
पीर का संत्रास पाकर दो हृदय रोने लगे।
नेह से परिचय हुआ उर वाटिका सुरभित हुई।
प्रेम की सिहरन बढ़ी गति देह की कम्पित हुई।।
फिर दिया चुंबन मधुप ने पुष्प भी सोने लगे।
पीर का संत्रास पाकर दो हृदय रोने लगे।।
व्याप्त है जब प्रेम इस ब्रह्मांड के हर सार में।
जीत मानव मानते क्यों प्रेमियों की हार में।।
अश्रु पीकर हम अभागे जिंदगी ढोने लगे।
पीर का संत्रास पाकर दो हृदय रोने लगे।।
डॉ ऋतु अग्रवाल
मेरठ, उत्तर प्रदेश
70602 27653

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