साहित्य का अखंड दीप-संतोष शान शर्मा

जासूस शब्द के जनक कहे जाने वाले जासूसी उपन्यासकार गोपाल राम गहमरी को समर्पित ११ वें गोपाल राम गहमरी साहित्य एवं कला महोत्सव में मेरे आमंत्रण का यह सातवां वर्ष था २०१९ के प्रथम वर्ष में एक अन्जान जगह अन्जान लोग और वहां होने वाली अन्जान गतिविधियों से एक जानी पहचानी ही नहीं पूरे परिवार में तब्दील होते इस उत्सव को मेरा प्रणाम है अब ना कोई अन्जान जगह है ना अन्जान लोग और ना ही किसी भी अन्जान गतिविधियों से अन्जान हैं वर्ष दर वर्ष अपनी भव्यता और पहचान को बनाने बढ़ाने में सफल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम जहां तीनों सेना में तैनात जवान भाइयों सहित अपने देश की सेवा से निवृत्त हुए जवान भी सम्मिलित होने से कार्यक्रम और भी गौरवशाली हो जाता है साथ ही देश के कोने-कोने से आने वाले कई साहित्यकारों को भी गौरांवित करते हैं होते हैं यह गौरव केवल गहमर का नहीं जो जहां से आता है वह यहां गौरवपूर्ण क्षण को चाहे यहां का भक्ति व अध्यात्म हो चाहे वह भक्ति व आध्यात्मिक से जुड़ा हो संस्कार व संस्कृति से जुड़ा हो सम्मानित कवि या साहित्यकारों के लिए भोजन शयन और नाश्ते की व्यवस्था से ही क्यों ना जुड़ा हो वह इन सभी अविस्मरणीय क्षणों को सहेज कर ले जाता है जो भुलाए ना भूल पाने की क्षमता रखता है हर एक व्यक्तित्व बच्चों जवान व बुजुर्गों की प्रस्तुति व उपस्थिति काबिले तारीफ रहती है पता नहीं कैसे ढूंढ लेते हैं इस कार्यक्रम को आयोजन करने वाले‌' उन देश के बेशकीमती साहित्य के क्षेत्र में कार्य करने वाले नगीनों को यह तो उनकी मेहनत लगन और आगे बढ़ने बढ़ाने का जुनून ही बता सकती है वरना वहां से अपना चौथा सम्मान प्राप्त करते वक्त हमारा सोचना कि वह हम जैसी पांच भाषाओं में लिखने बोलने और अभिनय करने वाली की कर्मठता को भला गहमर में रहते हुए हाथरस क्षेत्र के छोटे से गांव की इतनी दूरी को भी समेट कर सुन लिया परख लिया और भेज दिया आमंत्रण हमने कई बार सोचा कि इस बार पारिवारिक परिस्थितियां ठीक नहीं है कभी कुछ परेशानी चल रही है अथवा कुछ विपत्तियां खड़ी हुई हैं या आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है लेकिन पता नहीं यह मां कामाख्या की कृपा है या बाबा विश्वनाथ का आशीर्वाद या फिर साहित्य महोत्सव का अखंड साहित्य प्रेम लेकिन सब कुछ एक तरफ और हमारा आमंत्रण स्वीकार्य एक तरफ कितनी भी कड़ी व्यवस्था हो कितना भी कठिन सफर यह सभी कार्य अब तक संपन्न हुए वह भी सकुशल और निर्विघ्न अतः मां कामाख्या बाबा विश्वनाथ और सेना के तीनों जांबाज सैनिकों की भूमि को जो ठाकुर जी स्वरूप में सदा स्नेह बरसाते हैं उन्हें नमन प्रणाम करते हुए यही आशा करती हूं कि यह आयोजन कला साहित्य और संस्कृति को साथ लेकर और भी भव्यता को पूर्ण हो और स्नेह प्रेम ममता का यह अखंड दीप सदैव प्रज्वलित रहे ।


 संतोष शर्मा। "शान" हाथरस उत्तर प्रदेश


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ