11वां गोपालराम गहमरी संस्‍मरण -डॉ प्रेम शंकर द्विवेदी भास्कर

 सर्व प्रथम गहमर की पावन पवित्र उर्जस्वी, शौर्यपूर्ण धरा और पावन गंगा तथा मां कामाख्या देवी को नमन करता हूं। समीक्षात्मक अध्ययन एवं मूल्यांकन से जहां ज्ञात होता है कि अखण्ड जी का कार्यक्रम पूरी तरह सफल रहा वहीं यह कहना अलम न होगा कि इतने व्यापक कार्यक्रम को अकेले संपन्न किया। हालांकि आश्चर्य एवं दुःख का विषय है कि एशिया महाद्वीप के सबसे बड़े गांव में उन्हें एक भी सहयोगी न मिला। इससे प्रतीत होता है कि गोपाल राम गहमरी के पश्चात साहित्यिक चेतना की अलख और गोपाल राम गहमरी जी के एकल उत्तराधिकार को अखण्ड जी ने अंगीकार कर लिया है। कहीं उन्हें सहयोग और सहयोगी मिले होते तो कार्यक्रम कुछ अलग ही होता, क्योंकि संघ में शक्ति होती है। रहन -सहन , खानपान उत्कृष्ट था। सब्जी में मिर्च प्रभावी था।वह भी साहित्यकार के दिनचर्या की दृष्टि से। कुछ को छोड़ सभी कलाकार एवं साहित्यकारों का प्रदर्शन अच्छा था। प्रथम संध्या कतिपय साहित्यकार साहित्य की मर्यादा को तार तार करते दिखे। साहित्य प्रदर्शन प्रिय नहीं होता किन्तु वहां कुछ साहित्य की खाल ओढ़े अकवि भी थे। प्रायः फोटो खिंचवाने वालों की संख्या अधिक थी। कुछ कवि और उनकी रचनाएं स्तरीय थी। संचालन अच्छा लगा। अखण्ड जी की बाणी में मां सरस्वती की कृपा दृष्टि गत हुई। उनके पिता के अतीत कालीन संस्मरण अविस्मरणीय हैं। हालांकि मुझे मंच से अपने लेखन कृत्य पर विश्वास है।उसी ने ही मुझे बहुत कुछ दिया है। अन्त में मैं उस व्यक्तित्व का कायल हूं,जिसकी आंखों के सहेजे स्वप्न को आकार मिला। जिसने देश के कोने कोने से साहित्यकारों को एकजुट कर अस्वस्थ होते हुए भी एक मंच पर अवतरित किया।

डॉ प्रेम शंकर द्विवेदी भास्कर उपन्यासकार



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