पहाड़ो में गंगा- मोती प्रसाद साहू

रचनाकार संख्‍या -72


पहाड़ों में गंगा 


गंगा हिमालय की एक नदी
ऊॅचें गिरि श्रृंगों से कैसी है दिखती 


दो नग बीच दरार डालती-सी
नटखट प्रतिछण प्रमुदित
निर्भयता-सी मुखरित . . .


या स्वयं उन्हीं के बीच दबी-सी
चट्टानों के चरणों में बॅट-बॅट बहती-सी
कृषकाय, असहाय , अबला-सी
मानों जान बचाती 
फिर रही इधर-उधर
पतली गलियों में
घेर खड़े चहुॅ ओर जिसे उत्छृंखल. . .


या, मानों संचित हिम 
चुपके से ले जाने पर
धरी गयी-सी
घिरी हुई-सी
राह बनाकर निकल रही हो 
जैसे तैसे . . .


या मरकत के बीच 
पिघलती हीरे की तरह
दिख रही उपर से भू पर


या देव-दानवों बीच
अमृत-कलश छलकाती
ले जाती मोहिनी-सी


या हो स्वयं पर्वतों बीच 
एक सचेतन प्रज्ञा-सी
चमक रही जो 
अँधेरे में चपला-सी


बह रही निरंतर देवनदी गंगा
तरल -तरंगा
पर्वत का सीना फाड़
मोह और माया से रिश्ता झाड़
तीव्र है जिसके जल की धार


जलधि से मिलने को 
जिसको है जल्दी
ऐसी है हिमालय से निकलती
साफ- स्वच्छ गंगा नदी . . .



मोती प्रसाद साहू
राजकीय इण्टर कालेज
हवालबाग अल्मोड़ा उ0ख0
263636



 


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