रचनाकार संख्या - 71
जय जय अविरल गंगे।
हिम गिरि निर्गत फेनिल गंगें।
पावन धवल तरंगिनि गंगें।
हर हर गंगें कल कल गंगें
गोमुख से गंगा सागर तक
फटिक शिला सम उज्जल गँगें।
औषधि युक्ता रोग विमुक्ता
सुजल सुफला शीतल गंगें।
शंकर कलित जटा निसृत-नद
ब्रहमनंदिनी सुरसरि गंगें
देव वंदिनी वेद गायिनी
मुग्धा मधुर सुधा जल गंगें
मन रंजित मधुमय नौकायन
यथा जीव जग प्लावन संगें
जीवन कल्लोलित अंतस्तल
तट वन खग मृग नंदित गंगें।
मुक्ति हेतु कलि जीवन गंगें।
हुतात्मादि- जलांजलि गंगें।
पुष्पांजलि आरती तरंगें,
सर्वे भवन्ति सुखिना गंगें
प्रेषिका अन्नपूर्णा बाजपेयी
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