बनारस से आगे गाज़ीपुर शहर के बीच बसा गहमर ग्राम। जो एशिया का सबसे बड़ा गांव है यहां के जनता की आबादी 100000 है। आदरणीय साहित्यकार अखंड प्रताप सिंह भैया अखंड गहमरी के विषय में एक साहित्यकार शैलेंद्र श्रीवास्तव ने इनके बारे में बताया। और मेरा परिचय अखंड भैया से करवाया, दूरसंचार से वार्तालाप होने लगा। भैया जी ने अपने ग्रुप में मुझे जोड़ा, और दिनांक 20 ,21 के साहित्यिक सम्मेलन में उपस्थित होने का मुझे निमंत्रण दिया। मैंने स्वीकार किया और उपस्थित होने का वादा किया। मैं आयोजन में प्रथम बार उपस्थित हुई तो मुझे सबसे गहरी बात यह लगी कि मुझे ऐसा प्रतीत ही नहीं हुआ कि मैं घर से बाहर किसी कार्यक्रम के आयोजन में गई हूं। अखंड भैया सब परिवार और पत्नी ममता जी का व्यवहार बहुत ही मृदुल और स्नेहिल लगा। अपने घर में एक छोटे से भारत को इकट्ठा करने का भाव और एक साहित्यकार का आत्मीयता का भाव बहुत ही अनोखा और अनूठा लगा। मैंने देखा अखंड भैया बड़ी तन्मयता से सारे आयोजन को सफल करने में दिन-रात एक किए हुए थे। इनके ऊपर जैसे शादी विवाह की कोई बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो और भैया उसे निभा रहे हैं। आज के इस आधुनिक जमाने में मैं पहले विचार कर रही थी कि शायद होटल की बुकिंग होगी ₹5000 तक खर्च होंगे। लेकिन बिल्कुल भी ऐसा नहीं हुआ। भोजन की बड़ी उत्तम एवं व्यवस्था एवं बेहतर तरीके से नाश्ते का प्रबंध तथा घर में ही शयन का प्रबंध आज के इस परिवेश में कहां देखने को मिलता है। बहुत ही सहज भाव से हृदय से अतिथियों का स्वागत एवं सभी साहित्यकारों को समेटना और एक नियम में बांधना एक सबसे कठिन एवं बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। जिसको अखंड भैया ने पूरे परिवार के साथ मिलकर और कुछ साहित्यकार जो पहले से इस आयोजन में आकर आयोजन को सफल बनाते रहे हैं के साथ बखूबी निभाया। साहित्यकारों को मंच पर दो से तीन बार बोलने का अवसर कहानी वाचन और अन्य विधाओं में बोलने का सुनहरा अवसर भी प्रदान किया गया। कोई भी दिखावा नहीं कोई भी बात बढ़ा चढ़ा कर नहीं बोलना और नियमबद्ध तरीके से दो दिनों में पूरे कार्यक्रम को समेटना यह अपने आप में एक महत्वपूर्ण भूमिका है। कार्यक्रम में उपस्थित होकर मुझे बहुत ही अच्छा लगा। और मन में यह रोमांच हुआ कि मैं बार-बार इस आयोजन में आती रहूं, मां कामाख्या का दर्शन, गंगा स्नान एवं पूजन अर्चन मंदिर में प्रसाद वितरण एवं छोटे से कार्यक्रम का आयोजन तथा नौका विहार यह सब दृश्य ने मेरा मन मोह लिया। आगे से मैं ईश्वर से यही प्रार्थना करती हूं कि अखंड भैया इस आयोजन को आगे निरंतर बढ़ाते रहें साहित्यकारों की भीड़ इकट्टी होती रहे और यह आयोजन विश्व स्तरीय रूप ले ऐसी मैं शुभकामना रखती हूं।
प्रतिमा यादव (पंखुड़ी) गोरखपुर
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