कण-कण में जिसके अमृत बसा है ।
मानव ने क्यों उसको ठगा है ?
मिट्टी ,पत्थर , आव , हवा , वन ,
छीने सब उसके संसाधन ।
घर- फैक्टरियां है बनवाता ,
और तरक्की करता जाता ।।
सीना चीर निकाले सोना ,
नभ का छाने कोना-कोना ।
नदिया नाले बेजान हुए ,
जंगल सारे वीरान हुए ।।
मंगल- चांद यहाँ पर बिकता ,
लालच का तो अंत न दिखता ।
धड़कन थमती जाती क्षण-क्षण ,
फैला है हर तरफ़ प्रदूषण ।
धरती माँ अब फरियाद करे ,
कोई तो मेरे घाव भरे ।
कोई तो मेरे घाव भरे ।।
संजय 'सरल'
ऊधमपुर, जम्मू-कश्मीर
94196 47096

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