मैं तो बहती हवा का झोंका थी इन समाज के लोगों ने बांध दिया मुझको मैं तो बहना चाहती थी दूर कहीं वादियों में पर इन समाज के रिश्तो से ना मिली मंजिल जाना था कहीं और ठहर गयी कही और अब कोस रही हूं खुद को काश मैंने थोड़ी हिम्मत दिखाई होती न बधती किसी के बंधन में बहती रहती तो समा जाती कीन्ही वादियों में ना रहती अधूरी पर आज वही रोना है इन रिश्तो के बंधन ने बांध दिया मुझको नहीं तो आज खुले आसमान में मेरा बसेरा होता आज सूख रही हु मैं कहीं बंद कर दम मेरा घुटता है ना मेरा मिलन हुआ मेरी वादियों से ना मुझे मिली मंजिल कोई।
नेहा शर्मा विदिशा मध्यप्रदेश
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