उत्थान पर क़ुर्बान-माधुुरी



कई सालों से खड़ा था 

सिर तान कर

अपने आप को सबका

 रखवाला मानकर

 पीढ़िया बीत गई सबको

 छाया देता था

 हज़ारों पंछियों के अंडे 

 प्यार से सेता था

 नव कुमारियों की खिलखिलाहट सुनी थी

 इनके लिए फुलों की

 पंखुड़ियाँ चुनी थी

 वो इठलाते बादलों के

 साथ महका था

 शीतल बयारो के साथ

  बहका था

  आज  यहाँ  वहाँ 

   तितर  बितर

   अस्थि पंजर  सा

    बिखरा पड़ा है

   उसको यूँ  देखा तो

   साँस थम गई

   क्या कहे हाय !

    आँख नम होगई

    कहने  वालों ने कहा

     नगर का उत्थान होगया

     अरे ज़रा रूको देखो कौन

      क़ुर्बान होगया



माधुरी निगम ५६ ए. मधुबन

 कालोनी केसर बाग़ रोड

 इंदौर - ४५२००९

 एम. पी.



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