हिंदी दिवस विशेष
हिन्दी भारत जन गण वाणी इसपर तन मन वारा है।
सूर जायसी पंत निराला सब ने इसे सँवारा है।
सरल वर्तनी शुद्ध व्याकरण, देवनागरी लिपि इसकी-
इसका करें विकास निरंतर यह संकल्प हमारा है।
14 सितम्बर को हम हिन्दी दिवस के रूप में मनाते है , और यह न तो कोई त्यौहार है, न ही किसी महान आत्मा का जन्म दिवस, जो साल में एक बार आता हो , और ऐसा भी नहीं की साल में एक बार ही हमें हिन्दी की याद आती है। हिन्दी दिवस मनाने के पीछे हमारे नीति निर्माताओं का मानना है कि हिन्दी को सबसे बेहतर विकल्प रूप देना और पूरे देश को एक ही भाषा सूत्र में बांधना। आज हिन्दी के जो हालात हमारे हिन्दुस्तान में है उससे यह कहना गलत नहीं होगा कि, हिन्दी का आने वाले समय में स्वदेश में ही परदेशी वाली स्थिति बन जायेगी। आज हर परिवार अपने बच्चों को केवल अंग्रेजी ही सिखाने पर जोर देता है जिसका प्रमुख कारण आधुनिक तकनीकी तथा विदेशों में नौकरी के लिये पलायन माना जा सकता है। निसंदेह यह शर्म की बात है की हमारे बैंक , विद्यालय , रेल कार्यालय , पासपोर्ट कार्यालय , आयकर विभाग, तथा अन्य छोटे बड़े कल कारखाने सभी जगह अंग्रेजी ही संचार का माध्यम है। अब ऐसे में हम हिन्द में हिन्दी के भविष्य की क्या कल्पना करे। यद्यपि हिन्दी विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। ६१.५ करोड़ से अधिक लोगों द्वारा बोली, पढ़ी-और -लिखी जाती है। एक ओर हमारी हिन्दी राजभाषा , सम्पर्क भाषा और विश्व भाषा बनने को ओर अग्रसर हो रही है, तो दूसरी ओर अपने ही देश में हिन्दी पल -पल अपमानित हो रही है।
हमारी हिन्दी यूरोपीय भाषा परिवार के अंदर आती है और हिन्द आर्य भाषा संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं. प्रो. महावीर सरन जैन के अनुसार हिन्दी की उत्पत्ती अफगानिस्तान के बाद सिंधु के इस पार हिंदुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फ़ारसी साहित्य में भी "हिन्द" ; "हिन्दुश' के नाम से पुकारा गया और बाद में यह हिन्दीक शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में इन्दिके , इन्दिका , लैटिन में इन्दिया था अंग्रेजी में "इंडिया " बन गया. हिन्दी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। १००० ई. के आसपास इसकी स्वतंत्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, और बाद में यही आर्य भाषाओं के रूप में उद्धृत हुई है । आज दुनिया में कुल कितनी भाषायें है इसका अनुमान मुश्किल है पर लगभग ६८०९ भाषायें है ,जिनमे ९० फीसदी भाषा बोलने वालों की संख्या १ लाख से भी कम है और २०० ऐसी भाषायें हैं जिनको १० लाख से अधिक लोग बोलते हैं।भारतीय संविधान के अनुसार २२भाषाओं को मान्यता प्राप्त है परन्तु आंकड़ों के अनुसार १२१ भाषायें बोली और समझी जातींं हैं, और ५४४ बोलियां हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में कुल भाषाओं संख्या ४१८ है जिनमे ४०७ प्रयोग में लायी गयी हैं जबकि ११ विलुप्त हो चुकी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३५१ में स्पष्ट रूप से लिखा गया की सरकार का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार करे और उसका विकास करे । इस अनुच्छेद में यह भी कहा गया की हिन्दी के विकास के लिए हिन्द में 'हिन्दुस्तानी' और ८ वीं अनुसूची की १८ अन्य भाषाओं के रूप व पद को अपनाया जाय। देवनागरी लिपि में हिन्दी भारतीय संघ की भाषा है जबकि विभिन्न प्रदेशों की अपनी -अपनी सरकारी भाषायें हैं। अंग्रेजी भारतीय संघ की दूसरी राज्य भाषा है और इसका प्रयोग केंद्र सरकार गैर -हिन्दी भाषी राज्यों के साथ संवाद में करती है तथा यह नागालैंड , मेघालय की राजभाषा है। भारत का संविधान २२ भाषाओँ को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा देता है. इन सबमे हिन्दी का क्षेत्र विशाल है तथा हिन्दी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएँ) जैसे अवधि , ब्रजभाषा , बुंदेली ,भोजपुरी छत्तीसगढ़ी , कुमाउनी इत्यादी हैं। "स्वामी दयानंद"के अनुसार हिन्दी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।
दुनिया भर में संरक्षण के अभाव और अंग्रेजी के वर्चस्व से सैकड़ों भाषायें समाप्ति के कगार पर हैं और ऐसे देशों की सूचि में भारत की स्थिति चिंताजनक है। भाषा विशेषज्ञों का कहना है की भाषायें किसी भी संस्कृति का आइना होती हैं और एक भाषा की समाप्ति का अर्थ है की एक पूरी सभ्यता संस्कृति का नष्ट होना और इस स्थिति के कारण संयुक्त राष्ट्र ने १९९० के दशक में २१ फ़रवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस मनाये जाने की घोषणा की थी। राष्ट्र के विकास में मातृभाषा व अन्य भाषाओं की महत्ता को रेंखांकित करने की दृष्टि से केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल ने फैसला लिया कि विद्यालयों में बोर्ड भाषाओँ के उपयोग को बढ़ावा दिया जायेगा। न सिर्फ हिन्दी बल्कि हमारी क्षेत्रीय भाषाओं का भी अपना महत्व है और वो हमारी ऐतिहासिक सांस्कृतिक धरोहर हैं जो अब धीरे धीरे विलुप्त होने के कगार पर है ।
आज हम अपनी रोज के काम काज और बोलचाल के प्रयोग से लेकर आधुनिक शिक्षा तथा प्रोद्योगिकी इत्यादि के क्षेत्र में अंग्रेजी का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करने लगे है ऐसे में वैश्विक स्तर पर जहां "ग्लोबिश " भाषा ने धूम मचाई है वहीँ स्थानीय भाषायें जड़ से कमजोर होने लगी हैं। चीन में चिंग्लिश , भारत में हिंगलिश , फ़्रांस में फिंग्लिश आदि मिश्रित श्रेणी की भाषों के बढ़ते संक्रमण के बीच दुनिया की कुल ६९०० भाषाओं में से ३५०० भाषायें विलुप्त होने की कगार पर पहुँच गयी है। वैश्विक पटल पर अपनी प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिए हिन्दी भाषा को बड़ी चुनौती से गुजरना पड़ रहा है। आज हमें बहुत ही शर्म के साथ यह स्वीकार करना पड़ रहा है कि हिन्दी को हम बोलने और सरकारी/ गैर सरकारी दोनों ही तरह के काम में प्रयोग में लाने में खुद को हीन भावना से देखते है तथा अपने बच्चों को भी हम अंग्रेजी सिखाने और उसको अपनाने के लिए ही जोर दे रहे हैं। इन सबका प्रमुख कारण हिन्दी का जटिल स्वरुप और उसके प्रति हमारे समाज की लोकप्रियता का कम होना हैं। हिन्दी भाषियों ने अंग्रेजी के कुछ शब्दों को बहुत ही आसानी से अपने बोलचाल में धारण कर लिया है और कहीं न कही इन का हिन्दी अनुवाद भी कठिन और बोझिल सा लगता है. हमारा समाज , हमारी मीडिया , हमारी साधारण जीवन शैली सब आज अंग्रेजी को बखूबी अपना रही है और धीरे धीरे अंग्रेजी के कुछ शब्दों ने हिन्दी को कड़ी चुनौती दे दी है। इसका नतीजा यह है की हिन्दी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है।
आज हमारी राष्ट्र भाषा को किसी भी क्षेत्र में अपना सही स्थान नहीं मिल रहा। दफ्तर , बैंक स्कूल, इंटरनेट , हर जगह अंग्रेजी का वर्चस्व कायम है और कई बार तो अंग्रेजी नहीं जानने के कारण आवेदकों को रोजगार के अवसर भी गंवाने पड़ते है। आज हम अपनी हिन्दी तथा क्षेत्रीय भाषा को बोलने में भी हिचकिचाते है ,और अपने बच्चों को केवल अंग्रेजी ही सिखाना चाहते है क्योंकि आज के समय की मांग और विश्व स्तर पर रोजगार या अन्य किसी भी कार्य के लिए अंग्रेजी अनिवार्य है। आजकल स्कूलों में भी बच्चों को अंग्रेजी ही बोलने पर जोर दिया जाता है और यदि बच्चे हिन्दी का प्रयोग करते हैं तो उनको हिन्दी बोलने का जुर्माना भी भरना पड़ता है। ऐसे हालात में हिन्दी का भविष्य क्या होगा इसका अनुमान हम स्वयं ही लगा सकते हैं।
हिन्दी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं का घर में कम प्रयोग होने का एक और कारण है प्रेम विवाह। क्योंकि प्रेम विवाह में दम्पति एक दूसरे की क्षेत्रीय भाषा नहीं जानते तब वह हिन्दी या अंग्रेजी को ही अपनी बोलचाल की भाषा में शामिल करते हैंं और अपने बच्चों को विश्व स्तर पर रोजगार तथा अन्य प्रारम्भिक परीक्षाओं हेतु तैयार करने के लिए ग्लोबल भाषा की ही शिक्षा देते हैं। ऐसे में आज आने वाली पीढ़ी अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी साहित्यकारों के नाम तो जानती हैं पर भारत में रहते हुए भी वह हिन्दी तथा अपनी क्षेत्रीय भाषाओं से पूर्णतः अवगत नहीं है। अब चूँकि, हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है इसलिए हम सब हिन्दुस्तानियों का यह फर्ज बनता है कि हम हिन्दी को रोजमर्रा की जिन्दगी में शामिल करेंं और अपने बच्चों को अंग्रेजी के साथ-साथ हिन्दी तथा अपनी क्षेत्रीय भाषाओं को भी बिना झिझक सिखायें ताकि आनेवाले समय में हम अपनी संस्कृति और अपनी धरोहर को बचा सकें।
आधार हिन्द की हिन्दी प्यारी, गंगा सी गतिमान।
माँ की ममता लोरी इसमें, गाते हम यशगान।
विपुल शब्द हैं भाव इसी में निहित मृदुल व्यवहार-
दिन प्रतिदिन उपयोग बढाओ, जग में दो पहचान।
पुष्प लता शर्मा
लेखा अधिकारी इन्द्रप्रस्थ इंटरनेशनल स्कूल नई दिल्ली
नईदिल्ली
ई मेल : pusplatasharma@gmail.com
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