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शहरीकरण के इस दुष्प्रभाव में
लोगों के चाल-चलन,रहन-सहन,
आचार- विचार, खूब बदले हैं,
गाँव दशकों से आज भी लिए हैं,
निश्चल प्रेम हृदय में सतत, और
अपनेपन लिए लोग बहुत भले हैं!
शहरीकरण -----------------------
शहरों में है उजाड़ों का मौसम,
और गाँवों में है,बहारों का आलम,
शहर की बहुत ही भड़कदार है,
पहनावे और लिबास की शैली,
रग-रग में बसी है, इनकी स्पर्धा,
मानसिकता हो चली है,गंदी मैली
रात दिखती है यहाँ जगमगाती,
पर मन में दानवता बहुत पले हैं!
शहरीकरण -----------------------
प्रतिस्पर्धा है यहाँ पग-पग में,
स्वार्थ-संकुचन भरी है,रग-रग में,
बोझिल-सी है,यहाँ की जिंदगी,
खुदगर्जी ही है यहाँ की बंदगी,
भूखे-प्यासे नंगे और बेघरों की,
अवहेलना ये बहुत ही करते हैं,
जुबान पर पड़े हैं इनके ताले
बुझदिल ये बहुत ही डरते हैं,
मानवीय-संवेदनाएँ इनकी है,मरी
महत्त्वाकांक्षा में ये बहुत जले हैं!
शहरीकरण
ज्योति भाष्कर "ज्योतिर्गमय
सहरसा(बिहार)
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