सागर-रेनू अग्रवाल

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सागर कब हमारी ज़िंदगी में आ गए मुझे पता ही न चला ,जब पता चला तो बहुत देर हो चुकी थी । हां, सब कुछ लुटाकर होश में आए तो क्या आए।कब उन्होंने मुझे मुझसे जुदा कर दिया पता ही नहीं चला  ।वो अक्सर घर आते रहते थे ।उनका दिलकश अंदाज़ धीरे धीरे दिल को लुभाने लगा था।पता ही नहीं चला कब वो दिल में उतरते चले गए ।कहते हैं दिल को दिल से राहत होती है।उनका भी यही हाल था ।बातों २ में ऐसा लगने लगा कि दिल को जिसकी तलाश थी वो मिल ही गया ।जिस दिन उनसे न मिलूं खाली खाली लगता है।उनको  न देखूं तो दिल बेचैन हो उठता ।   उस दिन भी वो रोज की तरह मेरे करीब बैठकर बातें कर रहे थे ।पता नहीं, मुझे क्या हुआ ,ऐसा लगा चांदनी छिटक कर उनके चेहरे पर नूर बरसा रही है और मै उस चांदनी को पी गई।हां , मै उनके चेहरे को चूमती ही चली गई ।शायद बहुत समय से उनके सीने में भी कोई तूफान छिपा हुआ था ।अब तो उनके दिल के बांध भी टूटने लगे ।
           आज,अचानक फ़ौजी की वर्दी में उन्हें देखा तो देखती ही रह गई।उनका दिलकश अंदाज़ ए बयां दिल को छू गया । वो बहुत करीब आ चुके थे।मैंने पूछा ,' क्या आप हमें प्यार करते हैं?' कुछ नहीं बोले ,और मेरा चेहरा अपने चेहरे से ढक दिया।इसके साथ ही उन्होंने अपने होठों से मेरे होंठ सी दिए।उनकी महकती सांसे मेरे तन मन को भी महकाने लगी ।उनकी धड़कने मेरे सीने में भी धड़कने लगीं,और मै मदहोश ही गई।उनकी बाहों की गिरफ्त में कश्मशा के रहा गई मैं।ऐसा लग रहा था जैसे आसमां मेरी बाहों में समा गया हो।उनके बदन की खुशबू मुझे दीवाना बना रही थी ।जब होश आया तो मैं अपना सब कुछ गवां बैठी थी। हां मैं अपना दिल हार बैठी थी ।पहली बार अहसास हुआ कि प्यार क्या होता है ।ऐसा लगता है आज तक उन्हीं बाहों के घेरे में बंधी हूं।
                एक दूसरे के आकर्षण में बंधे हम कितनी देर बातें करते रहे ।थोड़ी देर बाद सागर फिर मचल उठे। मैं अपने जज़्बातों को समेटती सी उन्हें समझाने की नाकाम कोशिश करती रही ।उन्हें दुनियां की उंच नीच समझाती रही पर सागर तो जैसे ज़िद पर अड़े थे।एक बार फिर मैं उनकी ज़िद के आगे मजबूर हो गई ,प्यार जो करती थी उनसे।  उनका मदमस्त अंदाज दिल को लुभाने लगा ।उनकी सांसों कि गर्मी में तन - मन पिघलने लगा ।हम दोनों ही बहक रहे थे ।सागर तो जैसे पागल हो रहे थे , मान ही नहीं रहे थे।फिर मैंने ही अपने दिल पर पत्थर रखकर किसी तरह उनसे खुद को जुदा किया ।पर सच तो ये है कि मै खुद भी कमज़ोर पड़ने लगी थी । खैर, दोबारा जल्दी है मिलने का वादा करके वो चले गए ।
         यहां इतना सब हो गया । मै बेकरार हर वक्त इन यादों के सहारे मिलन की आस लिए उनके इंतजार में  बैठी रही ।पर वक़्त के सितम कहें या उनकी मेहरबानी ।कुछ समझ ही नहीं पाई कि ये कैसा कहर टूटा हम पर ।उन्होंने कहा शायद हम अब कभी मिल न पाएंगे।ऐसा लगा जिस्म से जान ही निकल गई हो उनसे बिछड़ने का ग़म मैं सह न सकी और बीमार पड़  गई  ।पर हाय ,बेदर्द ज़ालिम ने हमारा हाल भी नहीं पूछा । मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारे साथ ऐसा कुछ भी हो सकता था ।
    पर प्यार का ये शाश्वत नियम है कि प्यार दर्द ही देकर जाता है आज यही दर्दे दिल लेकर हम तड़प रहे हैं ।कौन कहता है कि चाहत पे सभी का हक है।हमदर्द जिसे समझा था उसी ने दर्द से रिश्ता जोड़ दिया ।तब तो कोई रिश्ता ही न था , आज  ऐसा रिश्ता है कि हमने उन्हें देखना ही छोड़ दिया।


 


रेनू अग्रवाल, लखनऊ



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