अब तो लौट आ साजन-किरण

कहानी 


"अरी बहुरिया , तैयार न भई अब तलक , जे का ? ना मांग में सिंदूर,ना पाँव में आलता। चूड़ी भी अब तलक ना  पहरी । पूजा का बखत हो चला है तनिक जल्दी कर"(सुधा की सास ने सुधा को समय का ध्यान दिलाते हुए कहा) । सुधा पर ना जाने क्यों इन सब बातों का असर नहीं हो रहा था। "अभी आती हूं" , उसने स्वीकृति में अपना सिर हिला दिया ।
आज तीज का त्यौहार था , जहाँ सभी महिलाओं के हृदय में उमंग और उत्साह था वहीं सुधा बेमन से साज श्रृंगार कर रही थी। लगभग दो बरस हो चले थे , उसके पति को घर से गए हुए । अब विदेश में जाकर बस गया था। विवाह के दो माह बाद ही  यह कहकर गया था कि जल्द ही उसे भी बुला लेगा ।  उसके माता -पिता ने यह जानकर रिश्ता तय किया था कि लड़का विदेश में नौकरी करता है , सुधा को भी साथ ले जाएगा। अभी गाँव में शादी हो रही है तो क्या? कौन सा ज्यादा दिन गाँव में रहना है?  सुधा को गाँव या शहर से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह तो बस यही चाहती थी कि उसे ऐसा जीवन साथी मिले, जो उसका सुख -दुख बाँट सके। जिससेअपने मन की बात कह सके और प्रेम पूर्वक जीवन व्यतीत करें। उसे भला कहाँ पता था कि एक बिरहन की तरह जीवन व्यतीत करना पड़ेगा।
यह सब सोचते -सोचते वह हरी साड़ी और हरी चूड़ियाँ पहन कर तैयार हो गई। तब तक उसकी सास ने पूजा की सारी तैयारियां कर ली थी । आस पड़ोस की सभी महिलाएँ एकत्रित हो चुकी थी थीं। बरसों से उनके घर में ही तीज का आयोजन होता है इसलिए सभी पूजा के लिए वहाँ पर आ चुकी थी। सभी ने श्रद्धा भाव से शिव गौरी की अराधना की तत्पश्चात भजन कीर्तन आरंभ कर दिया।
 बीच में ही रतन की अम्मा बोल पड़ी,"सुधा, कौनू खोज खबर आई तौरे भरतार की?"
अरे , रतन की अम्मा !  काहे जी जलाती हो ,बहुरिया का? काम ते ही तो गया है बिदेश ...मौका मिलते ही आ जावेगा। (साथ बैठी पड़ोस की काकी ने बात को बीच में काटते हुए कहा)। भजन कीर्तन करवे आई हो सो चुपचाप बैठकर करि लो । 
इन बातों ने सुधा को भीतर तक कुरेद कर रख दिया।
पूजा समाप्त होने तक ना जाने उसने अपने आप को किस तरह संभाला था। पूजा समाप्त होती है उसने अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लिया और सिसकने 
लगी । वह चीख - चीख कर अपनी पीड़ा को बाहर निकालना चाहती थी किंतु वह नहीं चाहती थीं कि बाहर तक उसकी आवाज जाए। उसका दर्द कमरे की चारदीवारी के भीतर ही सिमटकर रह गया था । क्या सारी उम्र उसे इसी तरह जीवन व्यतीत करना होगा ?
उसका इंतजार कुछ दिनों , महीनों या फिर वर्षों का है ?
इस तरह के तमाम प्रश्न उसके जहन में घूम रहे थे जिसका उतर वह स्वयं भी नहीं जानती रही।
रह  रह कर उसके अंतर्मन से यही आवाजा रही थी...अब तो लौट आ साजन .... साजन अब तो लौट आ ।
        
            ----किरण बाला, चंडीगढ़



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