प्रेम फरवरी
गुल कहूँ गुलशन कहूँ या रौनके महफ़िल कहूँ
हर जवाँ सीने में तुझको इक धड़कता दिल कहूँ
वो तेरा बेवाक हँसना याद है अब भी मुझे
क्या मैं उस मासूमियत को प्यार के काबिल कहूँ
आह भरते रात भर देखा सितारों को सदा
क्या मैं उनको भी मरीजे इश्क़ में शामिल कहूँ
तय किया जिस जुस्तजू में उम्र का वीराँ सफ़र
क्या तुझे मैं आज वो खोई हुई मंज़िल कहूँ
है फकत तेरी ख़ता ना कुछ है मेरा भी कसूर
कैसे तुझको राहे उल्फत में भला गाफ़िल कहूँ
हो गई बिस्मिल मैं अपने दिल की ही शमशीर से
क्या करूँ तुझसे शिकायत ,क्यूँ तुझे क़ातिल कहूँ
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डॉ नीलम श्रीवास्तवा
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15 फरवरी से 28 फरवरी गीत/गजल/लेख/मुक्तक लेखन विषय- होली
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