ऋतुराज बसंत-माधुरी पटना

 


ऋतुराज वसन्त


माँ शारदे तुम्हें है नमन बारम्बार,


रोम रोम में रची बसी तुम ,


वन्दन तुम्हारा हज़ारों बार।


हे ज्ञानदायनी,अमृत बरसाने वाली माँ!


काट अज्ञानरूपी बन्धन हमारे,


साहस, पराक्रम, धैर्य संग प्यार सौहार्द ज्ञानामृत पिला,


जीवन हमारा त्याग -तपोमय कर दे।


न रहे कलुषित कोई भी मन,हे धवल धामिनी!


मिटा कालिमा उर से हमारे, कर दे निर्मल तन और मन।


ले आई हो तुम संग अपने ऋतुराज वसन्त,



छूटा पीछा निष्ठुर शीत से,पतझड़ ने बना दिए थे,


हरे -भरे तरु भी जिसने पाषाण हृदय जैसे ठूंठ।


आए ऋतुराज वसन्त तुम्हारे,हो हर्षित जिनसे,


निकल आई हैं नूतन कोंपले,लिए संग अपने मधुमकरन्द।


चहुँ ओर खिल गई बगिया,सुमनों से हो आच्छादित,


मन्द मन्द बयार हो रही सुगंध से परिपूरित।


विहँस रहे गेंदा- गुलाब,मोतिया संग अनार,


ठाक जे रक्तवर्ण पुष्प खिल रहे संग- संग कचनार।


हो मदमस्त आल्हादित हैं कीट- पतंग,


रंग- बिरंगी तितलियों के संग भौंरे भी,


डोल रहे सुमनों के अंग अंग।


ऋतुराज वसन्त कर रहे सबको भाव- विभोर,


न रहे किसी के मन में कोई रंजिश,


बस प्रेम ही प्रेम बरसे चहुँ ओर।


माधुरी भट्ट
समाज सेवी
98354 70102


 



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