रचनाकार संख्या -84
गंगा
रो रही गंगा पुकार रही
हाल मेरा बुरा बोल रही गंगा
हिमालय की पुत्री
कल कल बहती
इंद्रधनुष के सात रंगों में रंगी गंगा
पापियों के पापों को धोती
शिव की जटा से निकली
भागीरथ की गंगा
थक गयी
अब न वो उमंग है न वो रंग है
न वो सुगंध है न महक
पापियों के पाप ढोती गंगा
मैली हो रही
राजनीति की जकड़ में
दुष्कर्मियों की पकड़ में गंगा
फिर भी गौरव है हमारी
मुक्तदायिनी रोगनाशनि गंगा
सूरज की नयी किरणों सी
दर्द से भरी
फिर भी मुस्काती गंगा
साँझ की गंगा
छितिज की लाल किरणों में
रंगी स्वर्णिम गंगा
नीले गगन के नीचे
नीली गंगा
सकुचाती सहमी सी
कल कल
निरंतर अविरल बहती गंगा
स्मिता धीरसरिया
बरपेटा रोड़
मोब ..9864547493
0 टिप्पणियाँ