पुस्तक चर्चा सरयू के तट पर , भरत मिलाप का नाट्य रूपांतरण कुशलेंद्र श्रीवास्तव
प्रकाशक सुभांजली प्रकाशन , कानपुर
आई एस बी एन ९७८९३८३५३८५८४
मूल्य ३०० रु प्रथम संस्करण २०१९
वर्तमान समय में नाटक लेखन अपेक्षाकृत बहुत कम हो रहा है . सेल्यूलर पर्दे के कारण नाटक के दर्शक भी कम होते गये हैं . यद्यपि नाटक विधा अपनी सशक्त अभिव्यक्ति की क्षमता के चलते कला जगत में पूरी ताकत के साथ उपस्थित है . आज भी स्टेज से अनेक फिल्मी कलाकारो का जन्म होता दिखता है . ऐसे समय में नये नाटकों के लेखन की आवश्यकता निर्विवाद है . वही भाव अन्य विधाओ की बनिस्पत जब नाटक के माध्यम से दर्शक तक पहुंचते हैं तो उनका प्रभाव दीर्घ कालिक होता है , क्योंकि नाटक के जरिये दृश्य व श्रवण संप्रेषण साथ साथ हो पाता है .
कुशलेंद्र श्रीवास्तव साहित्य जगत का जाना पहचाना नाम है . उम्र के साठवें दशक की आयु में ही कविताओ , कहानियों , व्यंग्य और नाटक की लगभग २५ स्वतंत्र किताबें प्रकाशित होना बड़ी बात है . उन्हें अनेक सम्मान मिल चुके हैं .
भरत मिलाप का प्रसंग राम चरित मानस का अत्यंत मनोहारी हिस्सा है . वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कथा को प्रासंगिक बनाते हुये कुशलेंद्र जी ने बड़ी कुशलता से यह नाट्य रूपांतर किया है . जब हम पुस्तक पढ़ते हैं तो केवल संवाद पठन से अभिव्यक्त विषय का आनंद नही लिया जा सकता , प्रत्येक दृश्य की पूर्व पीठिका को पढ़ना और समझना कथा का आनंद बढ़ाता है . नाटक की दृष्टि से यह एक लम्बा नाटक है . जब इसका मंचन हो , निर्देश तथा पात्रों से चर्चा हो , तभी किताब के नाटकीय पक्ष पर बेहतर टिप्पणी की जा सकती है .सुभाष चंद्रा जी ने किताब की भूमिका में ठीक ही लिखा है कि इस नाटक से भरत के चरित्र का दर्शन होता है . काल्पनिक दर्शक बनकर किताब पढ़ने के बाद मैं यही कहूंगा कि बहुत उत्तम संवाद रचे हैं लेखक ने . स्वयं को राम के युग में प्रतिस्थापित कर आज के परिवेश को जोड़कर अपने मन की उहापोह को भी पात्रों के जरिये कुशलता से अभिव्यक्त किया है कुशलेंद्र जी ने . उनसे रामकथा पर और भी नाटको की उम्मीद करता हूं . शुभकामना कि जल्दी ही कोई नाट्य दल इस नाटक का मंचन करे .
चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव
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