पुस्तक चर्चा - बिन मुखौटों की दुनिया

पुस्तक चर्चा कहानी संग्रह बिन मुखौटों की दुनिया कहानीकार डा ज्योति गजभिये
 प्रकाशक अयन प्रकाशन नई दिल्ली
मूल्य २२० रु हार्ड बाउंड पृष्ठ ११६


कहानी अभिव्यक्ति की वह विधा है जो परिवेश को आत्मसात कर इस तरीके से लिखने का कौशल चाहती है कि पाठक उस वर्णन में स्वयं का परिवेश ढ़ूंढ़ सके , घटना को महसूस कर सके . ज्योति गजभिये मूलतः अहिन्दी भाषी हैं , हिन्दी कहानीकार के रूप में सर्वथा नई हैं .यद्यपि उनकी क्षणिका , कविता , गजल , शोध प्रबंध की पुस्तकें आ चुकी हैं .उन्होने नासिरा शर्मा के कथा साहित्य पर शोध किया है .
  प्रस्तुत किताब में उनकी कुल १४ बेहतरीन कहानियां प्रकाशित हैं . अपनी भूमिका में में वे कविता की तरह लिखती हैं " शब्दो को ठोंक पीट कर वाक्य तैयार कर रही थी , कहानी लिखते हुये भी जब कविता कही से आकर अपनी झलक दिखला जाती तो उसे समझा बुझाकर वापस भेजना पड़ता " . यह सच है कि महानगरीय वातावरण संवेदना शून्य हो चला है , लोग नम्बरो और घड़ी के कांटो की तरह वहीं के वहीं घूम रहे हैं . यह दशा मनोरोगों को जन्म दे रही है . इसे ज्योति जी ने बारीकी से पकड़ा और अपना कथानक बनाया है .
संग्रह में बिरजू नही मरेगा , कवि सम्मेलन का आखिरी कवि , भूखे भेड़िये , टुकड़ा टुकड़ा प्यार , अनौखा ब्याह , कुलच्छिनी , नये जमाने की लड़की , बिन मुखौटो की दुनियां , फकीर नबाब , मिट्टी की खुश्बू , मन्नत का धागा , हीर का तीसरा जन्म , शेष हो तुम मेरे भीतर तथा  महापुरुष शीर्षको से कहानियां संग्रहित हैं . किसी कहानी को मैं कमजोर नही कह सकता . हां बिन मुखौटो की दुनियां जिस पर पुस्तक का नाम रखा गया है , सच ही प्रभावी कहानी है . कहानियां संवाद शैली में बुनी गई हैं , पठनीय  हैं .फ्लैप पर सूर्यबाला जी ने सही ही लिखा है ज्योति जीसे और परिष्कृत कहानियो की उम्मीद हिन्दी साहित्य जगत को है .



चर्चाकार .. विवेक रंजन श्रीवास्तव , जबलपुर



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