सजाए हैं सपने-दुर्गेश्वर राय

 साहित्य सरोज साप्ताहिक आयोजन क्रम –9




पलकों ने जब जब सजाए हैं सपने
नई नई राहें बनाए हैं सपने।

चाहे सिकन्दर हो चाहे हो चंदर 
विजेता का ताज सजाए हैं सपने।

पाप की नजरों से देखा है जिसने
मिट्टी में उसको मिलाए हैं सपने।

सती सावित्री सा निश्चय जो कर ले
यमराज से जान बचाए हैं सपने।

इनको संजोकर जो घर से  निकल पड़े
मंजिल तक उनको पहुंचाए हैं सपने।

 


 

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