सपना हो ना सका अपना-कंचन योगेंद्र

 साहित्य सरोज सप्ताहिक आयोजन क्रमांक 9
खुली आंखों से देख रहा था,
मैं एक सुंदर सपना l
पीले और सफेद रंग का दो,
मजली मेरा भी था घर अपना l

घर के द्वार पर था एक सुंदर सा,
तुलसी का वृंदावन l
रंग-बिरंगे खुशबूदार फूलों से,
महक रहा था मेरा घर आंगन l

घर के अंदर प्रवेश करते ही थी,
एक सुंदर सी बैठक l
वास्तु शास्त्र के हिसाब से सही,
आयोजन किया था बेशक l

आगे अंदर की ओर था मेरे छोटे,
बच्चों का प्यारा सा कमरा l
कमरे की छत ऐसी थी मानो,
आसमान हो सितारों भरा l

हमारे अपने कमरे की भी थी,
बात थी एकदम निराली l
सुंदर रंगो से सुशोभित थी दीवारें,
जैसे चारों ओर फैली हो हरियाली l

रसोई घर की बनावट भी,
एकदम अलग थी l
बड़े-बड़े राजा महाराजाओं के,
रसोई घर की उसमें झलक थी l

रसोई की बात आते है बड़े,
जोरो,से भूख लग आई l
इतने में मेरे पास बैठी मेरी,
धर्म पत्नी की आवाज आई l

चूल्हे की आग ठंडी हो रही है,
एक लकड़ी और जला लो l
खाना बन गया है खा लो और,
बच्चों को भी बुला लो l

थाली में परोसी गई थी हरी मिर्च,
प्याज और भाकरी l
परिवार का भरण पोषण करने के लिए
एक महल में कर रहा था मैं चाकरी l
धन्यवाद🙏
✍️रचयिता श्रीमती कंचन योगेंद्र अग्रवाल
फोन नंबर 8275692591
फर्स्ट फ्लोर रूम नंबर 7 कंचन दीप सोसाइटी,एनडीए रोड शिंदेपुल शिवने नियर हरीश कुमार सुपर शॉपिं
पुणे महाराष्ट्र 411023
Email address kanchanagr67@gmail.com


 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ