राष्ट्रीय नदी- शिल्पा अरोड़ा

रचनाकार संख्या-79


गंगा सुनते ही जैसे तन और मन दोनों पवित्र हो जाता है। इतना निर्मल और पावन की स्वत: ही साफ जल हमारे तन और मन को छू जाता है। एक आकृति सी उभरने लगती है भले ही हम गंगा किनारे जाएं या ना जाए। गंगा नदी जिसे महादेव ने अपनी जटाओं में हमारे उद्धार के लिए बांधा था ताकि उसका तेज वेग हमें या हमारी धरती को नुकसान ना पहुंचाए। इसका जल इतना पवित्र और ऑक्सीजन से भरा है की सालों इस जल को प्रदूषित नहीं होने देता। इंसान के जन्म से मृत्यु तक गंगा हमारी मां बनकर हमारा साथ देती है मृत्यु होने के बाद भी गंगाजल छिड़क कर पूरे घर का पवित्रीकरण किया जाता है। मुंह में डाल लो तो चरणामृत और नहा लो तो पापनाशिनी पर बड़े दुख की बात है कि जीवन पर्यंत जो प्रकृति हमारा पालन-पोषण करती है उसी को हमने प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी आज हमारा तीर्थ स्थल वैष्ण देवी जहां से बाणगंगा का उद्गम हुआ जहां मां भवानी ने तीर चला कर स्वयं मां गंगा निकाली वही आज कचरे का ढेर लगा है वह नदी करीब-करीब सूख चुकी है भले ही कल प्रशासन उसे ठीक भी कर दे तो क्या एक सामाजिक प्राणी होते हुए यह हम सबकी जिम्मेदारी नहीं की हम सब उससे स्वच्छ रखें।
गंगा जो धरती पर ईश्वर का प्रत्यक्ष प्रमाण है अद्भुत गुणों की खान है दुनिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है पूजनीय है मछलियों की कई प्रजातियां समेटे हुए हैं समेटे हुए हैं भारत की राष्ट्रीय नदी की उपाधि भी गंगा मैया को प्राप्त है यानी मनुष्य तो मनुष्य छोटे से छोटे जीव जंतुओं को पाल रही है उसे बचाना और मां को सम्मानित बनाकर धरती पर फिर बनाए रखना हम सभी का महत्वपूर्ण दायित्व है।
हरि ओम
शिल्पा अरोरा स्वर्णकार कॉलोनी विदिशा


 



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