गांगम वारि मनोहारी - अनुराधा अनिल द्विवेदी

रचनाकार संख्‍या - 79


गांगम वारि मनोहारी•••••• मुरारिचर्नच्युतं!!
त्रिपुरारिशिरश्चरी पापहारि••• पुनातु माम !!!
माँ गंगा की निर्मल धारा में देखते ही देखते उन्ही की संतानों ने मलिन कर दिया। क्या यही सोचकर भगवान श्रीराम के पूर्वज राजा भागीरथी ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए माँ गंगा का आव्हान किया।और उनकी प्रसन्नता के लिए राजपाट छोड़ कर जंगल में जा घोर तपस्या की?? भागीरथ तो तीसरी पीढ़ी थे उनके पूर्व राजा सगर, राजा दिलीप और फिर राजा भगीरथ के अत्यंत दुष्कर परीक्षा के बाद ब्रम्हा जी के कमंडल से माँ गंगा का अवतरण इस धरती पर हुआ।आज वही माँ गंगा स्वयं को स्वच्छ रखने की गुहार लगा रही। आज माँ पतितपावनी गंगा की अविरल धारा को रोकने और बंधन से युक्त करने की मूढ़ चेष्टा की जा रही ।जो कि एक अनुचित कदम है। कल्पना करती हूँ जब  गंगा विहीन भारत की तो उस मासूम बालक की सूरत सामने आ जाती है, जिसकी माँ इस दुनिया में नहीं होती। क्योँकि माँ तो आखिर माँ होती है ,माँ जैसा कोई नहीं। हिमालय से उद्भवित गंगा ,शिव की जटा से छूटी ,जन्हु ऋषि की जांघ से निकली और बन जाह्नवी आई । सागर से जा मिली जाह्नवी बन गई गंगासागर••••••••!!गंगा व्यापक उन्हें संकुचित होने से रोकना हमारा कर्तव्य है। फैक्ट्रियों का कचरा,दूषित नाले,माँ गंगा की पवित्रता पर ग्रहण के समान है।जिस माँ गंगा का नाम लेने मात्र से जुबान पवित्र हो जाती है,स्मरण करने मात्र से मन पवित्र हो जाता है। कुम्भ के मेले में पूरा विश्व अपनी और खिंच लेती है वो माँ गंगा आज निर्मलता पर लगे प्रश्नचिन्ह का जवाब मांग रही हमसे!!!!!आइये हम सब मिलकर ये प्रण ले कि हम गंगा की धारा को मलिन कदापि नहीं होने देंगे। वो हमारी जीवनदायिनी माँ है,और हम उसका सम्मान करेंगे।पर कैसे?? जब भी हम गंगा स्नान के लिए जाते है तो स्नान के पश्चात कपड़ो को गंगा में न धोएं। स्नान के वक्त तेल साबुन का प्रयोग न करें।स्नान के पश्चात जैसा की हमारी परंपरा में सम्मिलित है कि हम पूजा - पाठ करते है। तो अगरबत्ती,फूल,माला,वस्त्र इत्यादि हम मानसिक रूप से माँ को समर्पित कर किसी ऐसे महिला,पुरुष या बच्चे को प्रदान करें ,जिसे पाकर वो अपनी आवश्यकता की पूर्ति कर सके। सुना है शारीरिक पूजा से बढ़कर होती है मानसिक पूजा। हम सभी यदि अपनी और से थोड़ा थोड़ा प्रयास करे तो मुझे आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि माँ गंगा जिस उद्देश्य को लेकर इस धरा पर पधारी है, वह युगों तक अनवरत चलता रहेगा।
गंगा मेरे देश की अनमोल धरोहर है।और इसे किस प्रकार सुरक्षित रखा जा सकता है ,ये हमारे ही हांथो में है।••••••!!!! हमारे ही हांथो में है कि हम किस प्रकार गोमुख से लेकर गंगा सागर तक के माँ गंगा के इस सफर को स्वच्छ और निर्मल बना सकते है।


हे!! माँ गंगा मैं तुम्हे करबद्ध नमन , और वंदन करती हूँ। आप हिंदुस्तान का गौरव है।और यह संकल्प लेती हूं कि न ही स्वयं और न ही दुसरो के द्वारा आपकी पवित्र अविरल धारा को मलिन नही होने दूँगी। 
हर हर गंगे नमामि गंगे


हर हर गंगे ,नमामि गंगे,
भक्त वत्सला, निर्मल गंगे,
पापहरण भव, तारिणी गंगे,
सुमिरत कष्ट, निवारिणी गंगे
ब्रह्म कमण्डलु से उद्धत हो
विष्णुपदी कहलाई!!
शिव की जटा से निकल के
गंगे अविरल बहती आई!!

कुम्भज ऋषि ने पान किया तो भगीरथ मन चिंता व्यापी,
जन्हु ऋषि की जंघा से, निकल जाह्नवी नाम से व्यापी

भक्त भागीरथ के पितरों ने, मुक्त हो किया स्वर्ग प्रस्थान!
तारती आई अब तक माँ तू, जाने कितने पापी, बिन प्राण!

हे ! माँ गोमुखी नाम तेरा लेते ही तर जाते हम।
पर माँ तो माँ होती है, इसको क्यों मैला कर जाते हम।

आज माँ तेरे ऊपर न जाने कितने ही संकट आये।
बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों के नाले हमने तुझमे गिरवाये।

निर्मल,पावन गंगाजल को अंत समय में जो मुख लेते
उनका मरण सुखद हो जाता
नाम बस तेरा जो ले लेते ।

तुमने तो अब तक न नाने किन किन के पापों को धोया।
और मुर्ख मानव ने तुमको मैला कर सर पकड़ के रोया।

प्रण लेना है ,तेरे हर सपूत को तुझे बचाना है।
वर्ना इस धरती से तेरा नामोनिशां मिट जाना है।

बिन माँ के बच्चो का पालन कौन करेगा माँ गंगे।
ममता के पावन आँचल में नीर क्षीर लिए माँ गंगे।

लहू उबल जाता है जब देखु तुझको मैं संकट में माँ
निर्मल गंग धार बहे तेरा तू रहे सदा अब निष्कंटक माँ।

अब हम बच्चो का फ़र्ज़ यही जो आँचल तेरा बचा पाएं !
ताकि भविष्य में तुझे हाँथ ले, कसमें सत्यता की खा पाएं!! 

अनुराधा अनिल द्विवेदी
          डोंगरगढ़


 



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