हे शब्द-स्वामिनी - प्रतापनारायण मिश्र

हे शब्द-स्वामिनी !


हे शब्द-स्वामिनी ! शब्दों में छा जाओ।
आखर-आखर में  अपना वास बनाओ।


जनजीवन में
चेतनता के स्वर फूँको।
निर्मल-अकुण्ठ
पावनता के स्वर फूँको।


हर हालत में जीने की आस बँधाओ।


हो बैर न विग्रह
फैले भाईचारा।
बन शब्द वाक्य                 
सद्ग्रंथ करें उजियारा।


हर अंतस में यह दृढ़ विश्वास जमाओ।


फूले भी ख़ूब
फले भी सारी दुनिया।
मिलकर के साथ 
चले यह प्यारी दुनिया।


शब्दों का  ऐसा  मोहक  रास रचाओ।


                   ©प्रतापनारायण मिश्र
                        बाराबंकी (उ०प्र०)


 



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