मौसम नें जादू किया, बरसे नेह अनन्त ।
धरती इठलाती फिरे, आया राज बसन्त ।।
..
गीत बसन्ती गा रहे, जोगी हो या सन्त ।
कलियों पर यौवन चढ़ा, बौराया है कन्त ।।
..
भीनी भीनी से महक बिखरी है चहुँ ओर ।
बागों में फिरने लगे , दादुर चातक मोर ।।
..
सरसों फूली खेत में, हँसने लगे पलाश ।
शीत लहर नें ले लिया, देखो अब अवकाश ।।
..
फूलों के सँग झूमकर, भँवरे गाये गान ।
तितली को होने लगा , पंखों पर अभिमान ।।
..
पीत वसन पहने धरा, कर बैठी श्रृंगार ।
अलि गुँजन चहुँ ओर है, प्रमुदित है संसार ।।
..
मौसम की अनुपम छटा, खींचे मन की डोर ।
डाल डाल पर आ गए, देखो फिर से बोर ।।
..
बासन्ती मौसम हुआ, चलने लगी बयार ।
अम्बर से झरने लगी, प्रेम पगी रसधार ।।
..
रमा प्रवीर वर्मा
0 टिप्पणियाँ