डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे - प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "


शुभवस्त्रे हंस वाहिनी वीण वादिनी शारदे ,


डूबते संसार को अवलंब दे आधार दे !


हो रही घर घर निरंतर आज धन की साधना ,


स्वार्थ के चंदन अगरु से अर्चना आराधना


आत्म वंचित मन सशंकित विश्व बहुत उदास है,


चेतना जग की जगा मां वीण की झंकार दे !


सुविकसित विज्ञान ने तो की सुखों की सर्जना 


बंद हो पाई न अब भी पर बमों की गर्जना 


रक्त रंजित धरा पर फैला धुआं और औ" ध्वंस है


बचा मृग मारिचिका से , मनुज को माँ प्यार दे 


ज्ञान तो बिखरा बहुत पर , समझ ओछी हो गई 


बुद्धि के जंजाल में दब प्रीति मन की खो गई  


उठा है तूफान भारी , तर्क पारावार में 


भाव की माँ हंसग्रीवी , नाव को पतवार दे 


चाहता हर आदमी अब पहुंचना उस गाँव में 


जी सके जीवन जहाँ , ठंडी हवा की छांव में 


थक गया चल विश्व , झुलसाती तपन की धूप में 


हृदय को माँ ! पूर्णिमा सा मधु भरा संसार दे


 


प्रो सी बी श्रीवास्तव "विदग्ध "


A १ ,विद्युत मण्डल कालोनी , रामपुर , जबलपुर 


vivek1959@yahoo.co.in


 



 


 


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