डॉ मीना कुमारी परिहार'मान्या' की लघुकथाएं

 आत्मग्लानि (लघुकथा)

शान्ति आज अपने को अस्वस्थ महसूस कर रही थी, सारे बदन टूट रहे थे, शरीर कांप रहा था।  बुखार चढ़ता जा रहा था ,मालकिन के यहां से लगातार फोन आ रहा था।

मालकिन "अरे वो शांति तू अभी तक काम पर क्यों नहीं आई...? तेरा तो रोज का नखड़ा रहता है... रोज बीमारी का बहाना, फोकट में पैसे लेने की तेरी आदत हो गई है।"

शान्ति-"नहीं मालकिन ऐसी बात बिल्कुल नहीं है"

 मालकिन -"तो तो क्या है..? सुन तू अपनी बेटी को भेज दे, मेरे घर बहुत मेहमान आए हैं।"

 शान्ति-"जी मालकिन भेज देती हूं।

शान्ति के पति कैंसर की लंबी बीमारी  

 से पांच वर्ष की बिटिया को छोड़ चल

 बसे थे। पति के चले जाने के बाद अपना और बिटिया का किसी तरह गुजारा कर रही थी।पति गम में बीमार और कमजोर हो गई थी। बिटिया काम पर से जैसे  ही लौटती है तो थोड़ी ही देर में मालकिन का फोन आ जाता है।

मालकिन "तेरी बेटी ने मेरा सोने का चैन और पैसे चुराए हैं... तू बेटी को बोल मेरे सामान वापस दे दे, नहीं तो मैं पुलिस को बुलाऊंगी। "

"बिटिया रोने लगी... मां से कहने लगी, 

मां मैं तो काम करके सीधा घर आ रही हूं,मैंने कोई चोरी नहीं की है।"

 "शांति ने कमजोरी की हालत में बेटी को गुस्से से खूब मारा पीटा और बोली-

मालकिन के समान तू वापस कर दे।"

बिटिया ने कहा -"मां तुम भी मुझ पर विश्वास नहीं कर रही... तो अब मैं क्या करूं..?

"तभी मालकिन उसके घर पहुंचती है और कहती है कि मेरा सोने का चैन और पैसा मिल गया है ....मेरे नौकर ने चुराया था... मालकिन की बात सुन 

मानों शांति के पैरों से जमीन खिसक ग‌ए हों । आत्मग्लानि से शांति का दिल बैठ जा रहा था... हाय रे ये मैंने क्या कर दिया।"


                                           दिव्यांग 

       गृह प्रवेश की जोर -शोर से तैयारीयां चल रही थी। सुनो जी!  गृह प्रवेश की पूजा के पहले मैं चाह रही थी कि इंटीरियर डेकोरेशन वाले को बुलाकर घर को अच्छे से फर्निश करा लें, फिर गृह प्रवेश करेंगे। ठीक है मैं बुला लेता हूं पति ने कहा। इंटीरियर डेकोरेशन वाले से  डॉ दीपक पाल जी उसे बताते हैं... सुनिए इस कमरे में बहुत धूप आती है, बगीचे की ओर खिड़की खुलती है, इसे लाइट कलर से रंग देना और अलमीरा का सेल्फ ऐसा बनाना जिसमें रामायण और गीता ग्रंथ रखा जा सके। मां  को किताब पढ़ने का बहुत शौक है। डेकोरेशन वाला  बोला जी सर, दूसरा कमरा बच्चों के लिए ठीक रहेगा, इसे डार्क कलर से रंग देना, बच्चों के पढ़ने के लिए टेबल ,खेलने का समान इत्यादि के लिए अलमीरा भी बना देना और ये छोटा सा कमरा हम दोनों के लिए बताओ कैसा रहेगा...? डेकोरेटर बोला-"जी मैं  ये कह रहा हूंँ कि यह छोटा सा कमरा अपनी मां को क्यों नहीं दे देते..?"ये मास्टर रूम काफी बड़ा है,तो मांँ को क्यों दे रहे हैं..?"

"मेरी मांँ प्रोफेसर से सेवानिवृत्त हुई है ,पढ़ने का शौक है उसे वही रूम सूट करेगा।"

डॉ दीपक पाल जी की बातें सुनकर डेकोरेटर मन -ही -मन शर्मिंदगी महसूस कर रहा था...."  मैं मानसिक रूप से दिव्यांंग ही तो हूं ,जो अपनी मांँ

को अंँधेरी कोठरी में  रखा  हूंँ।  जिसमें ना तो धूप आती है ना ही हवा।



 डॉ मीना कुमारी परिहार'मान्या'




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