रचनाकार संख्या - 74
माॅ- - - - - - - - - - - - - - - - -
अब कब आओगी
अपनी ममतामयी गोद में
मुझे कब सुलाओगी
जो तेरा था
साथ ले गयी
शेष भी न बचा
जो हिस्से में था मेरा
छोड़ गयी खेतों में रेत
घुरा चाचा के हिस्से में
दर्द भरी सिसकियाॅ
उन्हें छोड़ गयी
थी जिनसे नफरत
साथ ले गयी
जिनसे था प्यार
तेरे चले जाने के बाद
बदल दिया गाॅव की सड़क
खेतों की मेढ़
अपनी जरूरतों की लिहाज से
काट दिया था सब
हरे-भरे पेड़
तू लौट कर वापस
घर पुनः न आ जाये
बना दिया गांव के समीप
एक विशाल बांध
तेरे पुराने घर को
हमने बदल दिया
तू भी दूर चलती गयी
आहिस्ता-आहिस्ता अपना
पुराना रास्ता बदलते
निर्मम होकर वापस
चली आयी तोड़ कर बांध
अपना लिया पुनः
अपनी पुरानी सड़क को
बहा ले गयी बरगद
जहां बनते थे खलिहान
पक्षियों का जो था बसेरा
बांस का वह झुरमुट
जहां घण्टों खेला करते
दोपहर में औरतों की
लगती थी चौपाल
द्वार पर नीम का पेड़
लगता सावन में झूला
ढ़ही भीत पर तनी कनात
वह टिन का कटोरा
जिसमें खाता था भात
कुश की डलिया
जिसमें खाते चबैना
लोहे का कजरौटा
मेरी आंखों में अंजन
लगाती थी माॅ
लकड़ी का मटमैला मलिया
रखती थी जिसमें उबटन
काॅच की ढ़ेरों गोलियाॅ
आम का पत्ता भी
बनाता जिसका नचौना
सरपत की तरई
जिस पर लेट कर
घण्टों खेला करता
सब समेट कर अबकी
अपने साथ ले चलना
और मुझे भी- - - - - -
ओ मेरी ममतामयी
गंगा माॅ - - - - -।
डाॅ•मन्नू राय
राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय पिठौरी पो-अघैला
जिला-सिवान
बिहार
841436
दूरभाष-9110038165
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