रचनाकार संख्या - 75
।।गंगा है नाम अथाह।।
गंगोत्री का है प्रवाह।
गंगा है नाम अथाह।
नदी मात्र यह नहीं है।
आस्था की धारा रही है।
अखिल भारत को समेटे।
हिमालय से सागर चाह।
गंगा है नाम अथाह।
इसके है अनगिनत नाम।
भागीरथ का पुण्यधाम।
जन जन में पूज्य माता
करती है सबसे निबाह।
गंगा है नाम अथाह।
त्रिवेणी का मूल स्रोत।
भक्ति शक्ति ओत प्रोत।
परम पुनीत जल पावन
हर लेती मन की आह।
गंगा है नाम अथाह।
भारत भू का ऐश्वर्य।
देवीरूप में धरे धैर्य।
हो आचमन गंगाजल
होती जग की चाह।
गंगा है नाम अथाह।
अनिल अयान
श्रीराम गली मारुति नगर
सतना मध्य प्रदेश
संपर्क_9479411407
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