रचनाकार संख्या - 76
नदियों में सवर्श्रेष्ठ माँ गंगे ,
त्रिपथगा , भागीरथी, जाह्नवि नाम से इसे बुलाते ।
युगों से अवतरण दिवस मनाते,
पूजा कर हम दीप जलाते ,
छुते ही पाप धूल जाते ,
किंतु अब हम मर्यादा भुलाते,
कचरा कूड़ा सब नदी में गिराते ।
माँ का आदर सत्कार न कर पाते,
मां गंगे संस्कारों की जननी,
संस्कृति की परिभाषा ।
भूलकर जन जन की आस्था,
प्रदुषण हम जी भर फ़ैलाते ।
यतन अब लगाएं ऐसे, मां गंगे को बचायें कैसे?
वरना हम पछताएंगे,
मां गंगे की परिभाषा, न फिर समझा पाएंगे ।।
अरुणा डोगरा शर्मा,
मोहाली, पंजाब।
0 टिप्पणियाँ