रचनाकार संख्या -77
मैं माँ गंगा,कभी थी पावनी,तुमने मुझे गन्दा किया! कभी धर्म,कभी आस्था,कभी राजनीति के नाम पर शोषित किया! आज मेरा ह्रदय चित्कार करता है,जब तुम अपनी इस माँ का तिरस्कार करते हो!और कितना दूषित करोगे मुझे? मुझमें कूड़ा करकट बहाते हो,मुर्दो को नहलाते हो,आस्था के नाम पर फूल मालाएं,दीपक मुझमें समाहित कर मुझे मैला करते हो!और तो ओर मेरी जीवन यात्रा मेरे बहाव पर सेतु बनाकर उसे बांधना मानो अपनी माँ के गले मे फांसी का फंदा डालकर कष्ट पहुचाते हो!क्या तुम्हें मेरा दर्द नही दिखता,मेरी पीड़ा से तुम्हारा दिल नही दुखता!मेरे बच्चो,मुझे आत्मिक पीड़ा होती है!मुझे सुरक्षित होने का अहसास तो दो!राजनीति के नाम पर मेरा शोषण होने से बचा लो मुझे! कभी मैं तुम्हारा ,तुम्हारे पूर्वजो का जीवन आधार थी,राजा भागीरथी की तपस्या की पुकार थी!अनादि काल से तुम्हारी पीढ़ी को अपने निर्मल जल से सींचती हुई पोषण करती थी!पर तुम सबने मिलकर ये क्या किया मेंर साथ ओर करते जा रहे हो....! आज मैं लाचार हु,विकल हु!निष्प्राण सी अपनी व्यथा से विचलित हु,अपनी रक्षा के लिए मूक प्रार्थना कर रही हु!अब तो अपने सन्तान होने का फर्ज निभाओ,कुछ तो उदारता का परिचय देते हुए मेरी रक्षा करो,मेरी रक्षा करो!
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मां गंगा हमारे धर्म, हमारी संस्कृति की जान है। सब इनकी महिमा ओर कृपा से परिचित हैं। अपनी धर्म निष्ठा और आस्था का केंद्र मां गंगा के लौकिक ओर धार्मिक स्वरूप के आधार पर हमारे हृदय में जो छवि है, उससे कई गुना अधिक इनका विस्तार है।मां गंगा मात्र नदी नहीं है बल्कि हमारे देश की सलिला जीवन दायिनी है।
गंगा मां मात्र संस्कृति और आस्था का केंद्र ही नही अपितु एकता की प्रतीक है
समय समय पर कई साहित्यकारों ने गंगा को पवित्रता का पर्याय बताया है।
जैसे:-
कबीरा मन निर्मल भया,
जैसे गंगा नीर।
चित्रकूट के घाट पर,
भई संतन की भीड़।
तुलसीदास चंदन घिसे,
तिलक देत रघुवीर।
इनके पवित्र तटों पर विशेष तिथि जैसे मौनी अमावस्या, माघ स्नान, पूर्णिमा, कुंभ या अन्य त्योहारों पर अलग अलग स्थानों पर उमड़ने वाली जनसैलाब गंगा के प्रति एकता का परिचय देती है।
मां गंगा के आंचल में प्रेम और बंधुत्व के छांव है।
पर्यटक गंगा के तट पर आत्मिक शांति का अनुभव करते है। इसके सानिध्य में व्यक्ति जीवंतता और सहज आनंद की अनुभूति करता है।
गंगा का तट स्वाध्याय , जप, साधन, ओर सिद्धि प्राप्ति का एकमात्र स्थान माना जाता है।
मां गंगा भारत भूमि पर बहने वाली सबसे लंबी नदी है। इनका उद्गम गंगोत्री के गोमुख है।यहां से गंगोत्री ऋषिकेश हरिद्वार होते हुए गंगा सागर में मिलती है।
भारतीय धर्म शास्त्रों में गंगा स्तुति,स्त्रोत,मंत्र और आरती का उल्लेख मिलता है। मां गंगा के पवित्र आंचल ने हमे अनादिकाल से पोषित किया है। अतः मां गंगा पूजनीय है।आस्था विश्वास का केंद्र है। अलग अलग स्थानों में अलग अलग नाम से पुकारे जाने वाली मां सलिला गंगा ही है। मै हृदय से मां गंगा की आभारी हूं। जिन्होंने मेरे पूर्वजों को अपनी आंचल में स्थान दिया!!
नमामि गंगे☺🙏
अंशु गोयल
सूरजपुर
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