गंगा को बचाये- डा. प्रतिभा कुमारी'पराशर

रचनाकार संख्या -48


बात स्वच्छता की
समझ में आ जाए
तो गंदगी स्वघर की
गंगा में न बहाएँ ।
जहाँ स्वच्छता ,वहाँ स्वर्ग है
इसे कभी मत 
हम सब भूलें ।
गंगा है यदि मां
तो उसका प्रतिदिन ही
हम मान बढ़ाएँ ।
माता नहलाती है हमको
वह तो सहलाती है हमको
और गुदगुदाती है हमको
निर्मल जल से
आप्यायित कर
मन को भी बहलाती हरदम
बड़े स्नेह से मुक्त किया
करती है जीवन- बंधन को
उस मां के प्रति हम सबका भी
हमारा भी फर्ज है
हमारे ऊपर बहुत-सा कर्ज है ।
चलो, उस कर्ज को 
अब चुकाएँ ।
स्वच्छ भारत,स्वस्थ भारत
हरदम मन से दुहराएँ ।
आओ हम सब मिलकर
गंगा को गंदा होने से बचाएँ ।


  डा. प्रतिभा कुमारी'पराशर'
    हाजीपुर बिहार


 



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